एकादशी (ग्यारस) 2024 में कब-कब की है| (ग्यारस) 2024
- सफला एकादशी: 7 जनवरी 2024, रविवार
- पौष पुत्रदा एकादशी: 21 जनवरी 2024, रविवार
- षटतिला एकादशी: 6 फरवरी 2024, मंगलवार
- जया एकादशी: 20 फरवरी 2024, मंगलवार
- विजया एकादशी: 6 मार्च 2024, बुधवार
- आमलकी एकादशी: 20 मार्च 2024, बुधवार
- पापमोचिनी एकादशी: 5 अप्रैल 2024, शुक्रवार
- कामदा एकादशी: 19 अप्रैल 2024,शुक्रवार
- बरूथिनी एकादशी: 4 मई 2024,शनिवार
- मोहिनी एकादशी: 19 मई 2024, रविवार
- अपरा एकादशी: 2 जून 2024, रविवार
- निर्जला एकादशी: 18 जून 2024, मंगलवार
- योगिनी एकादशी: 2 जुलाई 2024, मंगलवार
- देवशयनी एकादशी: 17 जुलाई 2024, बुधवार
- कामिका एकादशी: 31 जुलाई 2024, बुधवार
- श्रावण पुत्रदा एकादशी: 16 अगस्त 2024, शुक्रवार
- अजा एकादशी: 29 अगस्त 2024, गुरूवार
- परिवर्तिनी एकादशी: 14 सितम्बर 2024, शनिवार
- इन्दिरा एकादशी: 28 सितम्बर 2024,शनिवार
- पापांकुशा एकादशी: 13 अक्टूबर 2024, रविवार
- रमा एकादशी: 28 अक्टूबर 2024,सोमवार
- देवउठनी एकादशी: 12 नवम्बर 2024, मंगलवार
- उत्पन्ना एकादशी: 26 नवम्बर 2024,मंगलवार
- मोक्षदा एकादशी: 11 दिसम्बर 2024,बुधवार
- सफला एकादशी: 26 दिसम्बर 2024,गुरुवार
खाटू श्याम जी का इतिहास
खाटू श्याम जी राजस्थान के सीकर जिले में स्थित एक प्रसिद्ध हिंदू तीर्थस्थल है। खाटू श्याम जी को भगवान श्रीकृष्ण के कलियुग के अवतार के रूप में माना जाता है। उनके बारे में कई धार्मिक कथाएँ और पौराणिक कहानियाँ प्रचलित हैं। यहाँ खाटू श्याम जी के इतिहास और महिमा के बारे में जानकारी दी गई है:
#पौराणिक कथा#
खाटू श्याम जी का असली नाम “बर्बरीक” था, जो महाभारत के युद्ध के समय का एक महान योद्धा था। बर्बरीक महान पांडव भीम के पौत्र और घटोत्कच के पुत्र थे। उनकी माता का नाम मोरवी था। उन्हें भगवान श्रीकृष्ण ने श्याम का नाम दिया था।
#### बर्बरीक का बलिदान
महाभारत के युद्ध से पहले बर्बरीक ने अपनी माता से वचन दिया था कि वह हमेशा कमजोर पक्ष की ओर से युद्ध करेगा। उसकी ताकत इतनी प्रबल थी कि वह अकेले ही पूरे युद्ध को समाप्त कर सकता था। जब बर्बरीक युद्ध में शामिल होने के लिए चल पड़ा, तो श्रीकृष्ण ने उसका मार्ग रोक दिया और उसकी परीक्षा लेने का निश्चय किया। श्रीकृष्ण ने बर्बरीक से उसकी शक्ति के बारे में पूछा और यह भी जानना चाहा कि वह युद्ध में किसकी ओर से लड़ेगा।
बर्बरीक ने उत्तर दिया कि वह हमेशा कमजोर पक्ष की ओर से लड़ेगा। श्रीकृष्ण को यह बात समझ में आई कि इससे युद्ध की दिशा पूरी तरह से बदल सकती है। तब श्रीकृष्ण ने बर्बरीक से उसका सिर दान में मांगा। बर्बरीक ने खुशी-खुशी अपना सिर श्रीकृष्ण को दे दिया। श्रीकृष्ण ने उसके बलिदान से प्रसन्न होकर उसे वरदान दिया कि कलियुग में वह श्याम के नाम से पूजे जाएंगे और उनकी भक्ति करने वालों के सभी कष्ट दूर होंगे।
### मंदिर का इतिहास
खाटू श्याम जी का मंदिर राजस्थान के सीकर जिले के खाटू गांव में स्थित है। यह मंदिर एक प्रमुख धार्मिक स्थल है और यहाँ हर साल लाखों भक्त दर्शन करने आते हैं। मंदिर के मुख्य देवता खाटू श्याम जी हैं, जिनकी मूर्ति का सिर ही प्रतिष्ठित है। कहा जाता है कि बर्बरीक का सिर युद्ध समाप्ति के बाद एकत्रित किया गया था और खाटू में उसकी स्थापना की गई थी।
मंदिर की स्थापत्य कला और इसका धार्मिक महत्व इसे एक महत्वपूर्ण तीर्थस्थल बनाता है। यहाँ प्रतिवर्ष फाल्गुन महीने में भव्य मेला लगता है, जिसे ‘फाल्गुन मेला’ कहा जाता है, जिसमें बड़ी संख्या में श्रद्धालु शामिल होते हैं।
### पूजा और उत्सव
खाटू श्याम जी के मंदिर में नियमित रूप से पूजा-अर्चना और भजन-कीर्तन होते हैं। विशेष अवसरों पर यहाँ भव्य समारोह और मेलों का आयोजन किया जाता है। फाल्गुन मेला और जन्माष्टमी जैसे त्योहारों पर यहाँ विशेष आयोजन होते हैं।
खाटू श्याम जी के भक्त मानते हैं कि उनकी भक्ति और आराधना करने से सभी मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं और जीवन में सुख-समृद्धि आती है। उनके भक्त ‘जय श्री श्याम’ के नारे लगाते हुए भक्ति में लीन रहते हैं।
इस प्रकार, खाटू श्याम जी का इतिहास, उनकी महिमा और उनके प्रति लोगों की आस्था की गहरी जड़ें हैं, जो उन्हें एक महत्वपूर्ण धार्मिक और सांस्कृतिक स्थान बनाती हैं।